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जानवर हूं में

चाहता हूं तो निकल नही पाता हूं
उनकी खुशी केलिए बंदी में रहता हूं ,
जो खाने केलिए मिलता है
उसको खाता हूं ,
जब खाने केलिए मिलता नही है
कुछ बोल भी नहीं पता हूं ,

मेरी दुख दर्द किसीको बता नही पाता हूं
में कभी हसता नही हूं
में सिर्फ रोता हूं ,
मुझे देख कर सब खुशी और हसते हैं
उनके लिए हम जान भी देते हैं ,
उनकी जरूरत पर हम काम देते हैं
जब हमारी जरूरत नहीं होता है
हमको रास्ते पे छोड़ देते हैं ,

उनके जैसा नही है हम
हमको जो पालते हैं
उनके भरोसायोग्य होते है हम ,
हमारी बचे को दूर कर देते हैं हमसे
उनकी बचे को दूध देते हैं हमसे ,
हमारी प्राणी को इतना कष्ट क्यों देते हो भगवान
हम कैसा पाप किए थे भगवान

हमारी दुख इतना में खतम नही होता है भगवान
जो तो हमारे साथ करते थे करते थे
अंतिम में हमको मार कर खाते भी है भगवान ,
ये कलयुग कब खतम होगा भगवान
और दुख सह नहीं होता है भगवान ,
मानव की रूप में रखयास हैं यहां
खुद की शौक केलिए
पास में रखते हैं हमको यहां ,
खुद की शांति केलिए
खाते हैं दूसरे जाति की प्राणी को यहां ,

ये कैसा विचार है यहां
समझवाले से ज्ञान देने वाले ज्यादा हैं यहां ,
बिना दोष में भी पिटाई करते हैं हमको
खुद की परिशानिया में पिटाई करते है हमको ,
इतना बड़ा क्या पाप किए थे हम
इतना बड़ा सज्जा मिल रहा है हमको ,

उनकी मनोरंजन केलिए नचाते हैं हमको
कहां कहां पैसा रोजगार करते हैं नचा कर हमको ,
पंख है उड़ नही पाते हैं
पैर है दौड़ नही पाते हैं ,
पास में रख कर अत्याचार करते हैं
पेड़ ,पौधा काट कर हमको निकल देते हैं ,
जायेंगे तो कहां जायेंगे
सारी जिंदगी गुलाम हो कर रहेंगे ,

जहां जाते हैं खाने केलिए भगा देते हैं
क्या खायेंगे घास ,पेड़ ,पौधा ,खेती सब तो अब जहर है ,
ये मानव जाति खुद केलिए इतना नीचे चला जाता है
वो क्या सोचेगा हमारी बारे में ,
हमारी जिंदगी में ऐसा लिखा है
कलयुग में ऐसे पाना है ,

हम जानवर है जनाब
हर किसका अधिकार है
हमारे उपर राज करने का जनाब ,

 

Writter-Pranav

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